Tretabad khandan exposure part 3
Guys I am going to publish few blogs in Hindi also for my viewer's plea
Rig Veda 10 th mandala 129 suktam nasadiya suktam नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् ।
Rig Veda 10 th mandala 129 suktam nasadiya suktam नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् ।
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद्गहनं गभीरम् ॥ १॥
अभी वर्तमान में कौन पूरी तरह से ठीक-ठीक बता सकता है की कब और कैसे इस विविध प्रकार की सृष्टि की उत्पत्ति और रचना हुई, क्यूंकि विद्वान लोग तो खुद सृष्टि रचना के बाद आये। अतः वर्तमान समय में कोई ये दावा करके ठीक-ठीक वर्णण नहीं कर सकता कि सृष्टि बनने से पूर्व क्या था और इसके बनने का कारण क्या था।
इस जगत् की उत्पत्ति से पहले ना ही किसी का आस्तित्व था और ना ही अनस्तित्व, मतलब इस जगत् की शुरुआत शून्य से हुई।
तब न हवा थी, ना आसमान था और ना उसके परे कुछ था,
चारों ओर समुन्द्र की भांति गंभीर और गहन बस अंधकार के आलावा कुछ नहीं था। तब न हवा थी, ना आसमान था और ना उसके परे कुछ था,
२. न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः ।
आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किञ्चनास ॥२॥
उस समय न ही मृत्यु थी और न ही अमरता, मतलब न ही पृथ्वी पर कोई जीवन था और न ही स्वर्ग में रहने वाले अमर लोग थे,
उस समय दिन और रात भी नहीं थे।
उस समय बस एक अनादि पदार्थ था(जिसे प्रकृति कहा गया है), मतलब जिसका आदि या आरंभ न हो और जो सदा से बना चला आ रहा हो।
आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किञ्चनास ॥२॥
उस समय न ही मृत्यु थी और न ही अमरता, मतलब न ही पृथ्वी पर कोई जीवन था और न ही स्वर्ग में रहने वाले अमर लोग थे,
उस समय दिन और रात भी नहीं थे।
उस समय बस एक अनादि पदार्थ था(जिसे प्रकृति कहा गया है), मतलब जिसका आदि या आरंभ न हो और जो सदा से बना चला आ रहा हो।
३. तम आसीत्तमसा गूहळमग्रे प्रकेतं सलिलं सर्वाऽइदम् ।
तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम् ॥३॥
शुरू में सिर्फ अंधकार में लिपटा अंधकार और वो जल की भांति अनादि पदार्थ था जिसका कोई रूप नहीं था, अर्थात जो अपना आयतन न बदलते हुए अपना रूप बदल सकता है।
फिर उस अनादि पदार्थ में एक महान निरंतर तप् से वो 'रचयिता'(परमात्मा/भगवान) प्रकट हुआ।
तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम् ॥३॥
शुरू में सिर्फ अंधकार में लिपटा अंधकार और वो जल की भांति अनादि पदार्थ था जिसका कोई रूप नहीं था, अर्थात जो अपना आयतन न बदलते हुए अपना रूप बदल सकता है।
फिर उस अनादि पदार्थ में एक महान निरंतर तप् से वो 'रचयिता'(परमात्मा/भगवान) प्रकट हुआ।
४. कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत् ।
सतो बन्धुमसति निरविन्दन्हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा ॥४॥
सबसे पहले रचयिता को कामना/विचार/भाव/इरादा आया सृष्टि की रचना का, जो की सृष्टि उत्पत्ति का पहला बीज था,
इस तरह रचयिता ने विचार कर आस्तित्व और अनस्तित्व की खाई पाटने का काम किया।
सतो बन्धुमसति निरविन्दन्हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा ॥४॥
सबसे पहले रचयिता को कामना/विचार/भाव/इरादा आया सृष्टि की रचना का, जो की सृष्टि उत्पत्ति का पहला बीज था,
इस तरह रचयिता ने विचार कर आस्तित्व और अनस्तित्व की खाई पाटने का काम किया।
५. तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासीदुपरि स्विदासीत् ।
रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात् ॥५॥
फिर उस कामना रुपी बीज से चारों ओर सूर्य किरणों के समान ऊर्जा की तरंगें निकलीं,
जिन्होंने उस अनादि पदार्थ(प्रकृति) से मिलकर सृष्टि रचना का आरंभ किया।
रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात् ॥५॥
फिर उस कामना रुपी बीज से चारों ओर सूर्य किरणों के समान ऊर्जा की तरंगें निकलीं,
जिन्होंने उस अनादि पदार्थ(प्रकृति) से मिलकर सृष्टि रचना का आरंभ किया।
६. को अद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः ।
अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥६॥अभी वर्तमान में कौन पूरी तरह से ठीक-ठीक बता सकता है की कब और कैसे इस विविध प्रकार की सृष्टि की उत्पत्ति और रचना हुई, क्यूंकि विद्वान लोग तो खुद सृष्टि रचना के बाद आये। अतः वर्तमान समय में कोई ये दावा करके ठीक-ठीक वर्णण नहीं कर सकता कि सृष्टि बनने से पूर्व क्या था और इसके बनने का कारण क्या था।
७. इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न ।
यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद ॥७॥
सृष्टि रचना का स्रोत क्या है? कौन है इसका कर्ता-धर्ता?
सृष्टि का संचालक, अवलोकन करता, ऊपर कहीं स्वर्ग में है बैठा।
हे विद्वानों, उसको जानों.. तुम नहीं जान सकते तो कौन जान सकता है?
-Nasadiya Sukta translation - hymn of creation
-nasadiya sukta in hindi
यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद ॥७॥
सृष्टि रचना का स्रोत क्या है? कौन है इसका कर्ता-धर्ता?
सृष्टि का संचालक, अवलोकन करता, ऊपर कहीं स्वर्ग में है बैठा।
हे विद्वानों, उसको जानों.. तुम नहीं जान सकते तो कौन जान सकता है?
-Nasadiya Sukta translation - hymn of creation
-nasadiya sukta in hindi
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